मौलिक अधिकारों का अर्थ
मौलिक अधिकार किसी व्यक्ति के उन अधिकारों को कहा जाता है जो एक सम्मानित जीवन यापन के लिये मौलिक हैं। भारतीय संविधान ने भारतीय नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं जिनमें राज्य द्वार हस्तक्षेप नही किया जा सकता। ये मौलिक अधिकार ऐसे अधिकार हैं जो नागरिको के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये अति आवश्यक हैं और इनके बिना मनुष्य का सर्वांगीण विकास संभव नही है। मौलिक अधिकार कई करणों से मौलिक हैं:-
1. मौलिक अधिकारों देश के संविधान में स्थान दिया गया है और संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त उनमें अन्य किसी भी प्रकार का संशोधन नही किया जा सकता।
2. इन अधिकारों के अभाव में ये अधिकार किसी भी व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास की कल्पना संभव नही। किसी भी व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास के लिए मौलिक अधिकार मूल रूप में आवश्यक हैं, और इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्द हो जायेगा।
3. मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नही किया जा सकता।
4. मौलिक अधिकार प्रत्येक नागरिक को समान रूप से प्राप्त होते है।
मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण
मौलिक अधिकारों का वर्णन भारतीय संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 12 से 35 तक किया गया है। 44 वें संशोधन के पास होने के पूर्व संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों को सात श्रेणियों में बांटा जाता था। 44 वे संशोधन के अनुसार संपति के अधिकार को सामान्य कानूनी अधिकार की श्रेणी में रख दिया गया।
भारतीय नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार:-
मौलिक अधिकारो पर संक्षिप्त टिप्पणी
- अनुच्छेद 12 (परिभाषा)
- अनुच्छेद 13 (मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां)
समता का अधिकार
- अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता)
- अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध)
- अनुच्छेद 16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता)
- अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत)
- अनुच्छेद 18 (उपाधियों का अंत)
स्वातंत्रय–अधिकार
- अनुच्छेद 19 (वाक्–स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण)
- अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण)
- अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण)
शोषण के विरूद्ध अधिकार
- अनुच्छेद 23 (मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रय का प्रतिषेध)
- अनुच्छेद 24 (कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध)
धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार
- अनुच्छेद 25 (अंत: करण की और धर्म के अबोध रूप में मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता)
- अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता)
- अनुच्छेद 27 (किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करांे के संदाय के बारे में स्वतंत्रता)
- अनुच्छेद 28 (कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता)
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
- अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण)
- अनुच्छेद 30 (शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करनेका अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार)
- अनुच्छेद 31 (निरसति)
कुछ विधियों की व्यावृत्ति
- अनुच्छेद 31क (संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति)
- अनुच्छेद 31ख (कुछ अधिनियमों और विनिमयों का विधिमान्यकरण)
- अनुच्छेद 31ग (कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति)
- अनुच्छेद 31घ (निरसित)
सांविधानिक उपचारों का अधिकार
- अनुच्छेद 32 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए उपचार)
- अनुच्छेद 32क (निरसति) ।
- अनुच्छेद 33 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का, बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति)
- अनुच्छेद 34 (जब किसी क्षेत्र में h सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का निर्बधन
- अनुच्छेद 35 (इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान)
अधिकारों की रक्षा हम तब कर पाएंगे जब हमे अपने अधिकारों का ज्ञान होगा। उत्तर भारतीय महासंघ ने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए उल्लेखनीय कार्य किये हैं। संघ मूल अधिकारों की रक्षा के लिए सतत प्रयत्नशील है और भविष्य में भी हमारा यही प्रयास होगा कि कोई भी व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों से वंचित न रह जाये!